अनंत की पुकार – Anant Ki Pukar (Hindi Edition)

375.00

Category: Tag:

Description

पूरी पृथ्वी को छोड़ भी दें तो इस देश में भी एक आध्यात्मिक संकट की, एक स्प्रिचुअल क्राइसिस की स्थिति है। पुराने सारे मूल्य खंडित हो गए हैं। पुराने सारे मूल्यों का आदर और सम्मान विलीन हो गया है। नये किसी मूल्य की कोई स्थापना नहीं हो सकी है। आदमी बिलकुल ऐसे खड़ा है जैसे उसे पता ही न हो–वह कहां जाए और क्या करे? ऐसी स्थिति में स्वाभाविक है कि मनुष्य का मन बहुत अशांत, बहुत पीड़ित, बहुत दुखी हो जाए। एक-एक आदमी के पास इतना दुख है कि काश हम उसे खोल कर देख सकें उसके हृदय को, तो हम घबड़ा जाएंगे। जितने लोगों से मेरा संपर्क बढ़ा उतना ही मैं हैरान हुआ! आदमी जैसा ऊपर से दिखाई पड़ता है, उससे ठीक उलटा उसके भीतर है। उसकी मुस्कुराहटें झूठी हैं, उसकी खुशी झूठी है, उसके मनोरंजन झूठे हैं; और उसके भीतर बहुत गहरा नरक, बहुत अंधेरा, बहुत दुख और पीड़ा भरी है। इस पीड़ा को, इस दुख को मिटाने के रास्ते हैं; इससे मुक्त हुआ जा सकता है। आदमी का जीवन एक स्वर्ग की शांति का और संगीत का जीवन बन सकता है। और जब से मुझे ऐसा लगना शुरू हुआ, तो ऐसा प्रतीत हुआ कि जो बात मनुष्य के जीवन को शांति की दिशा में ले जा सकती है, अगर उसे हम उन लोगों तक नहीं पहुंचा देते जिन्हें उसकी जरूरत है, तो हम एक तरह के अपराधी हैं, हम भी जाने-अनजाने कोई पाप कर रहे हैं। मुझे लगने लगा कि अधिकतम लोगों तक, कोई बात उनके जीवन को बदल सकती हो, तो उसे पहुंचा देना जरूरी है। लेकिन मेरी सीमाएं हैं, मेरी सामर्थ्य है, मेरी शक्ति है, उसके बाहर वह नहीं किया जा सकता। मैं अकेला जितना दौड़ सकता हूं, जितने लोगों तक पहुंच सकता हूं, वे चाहे कितने ही अधिक हों, फिर भी इस वृहत जीवन और समाज को और इसके गहरे दुखों को देखते हुए उनका कोई भी परिमाण नहीं है। एक समुद्र के किनारे हम छोटा-मोटा रंग घोल दें, कोई एकाध छोटी-मोटी लहर रंगीन हो जाए, इससे समुद्र के जीवन में कोई फर्क नहीं पड़ सकता है। और बड़ा मजा यह है कि वह एक छोटी सी जो लहर थोड़ी सी रंगीन भी हो जाएगी, वह भी उस बड़े समुद्र में थोड़ी देर में खो जाने को है, उसका रंग भी खो जाने को है।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “अनंत की पुकार – Anant Ki Pukar (Hindi Edition)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *