कानों सुनी सो झूठ सब – Kano Suni So Jhuth Sab (Hindi Edition)

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‘संत दरिया प्रेम की बात करेंगे। उन्होंने प्रेम से जाना। इसके पहले कि हम उनके वचनों में उतरें…अनूठे वचन हैं ये। और वचन हैं बिलकुल गैर-पढ़े लिखे आदमी के। दरिया को शब्द तो आता ही नहीं था; अति गरीब घर में पैदा हुए—धुनिया थे, मुसलमान थे।
कानों सुनी सो झूठ सब – Kano Suni So Jhuth Sab
अध्याय शीर्षक
#1: सत्गुरु किया सुजान
#10: रंजी सास्तर ग्यान की
#10: सूर न जाने कायरी
#10: सुख-दुख से कोई परे परम पद
#10: अनहद में बिसराम
#10: शून्य-शिखर में गैब का चांदना
#10: दरिया लच्छन साध का
#10: निहकपटी निरसंक रहि
#10: पारस परसा जानिए
#10: मीन जायकर समुंद समानी
विवरण
संत दरिया वाणी पर ओशो के दस प्रवचन। पांच प्रवचन दरिया के पदों पर व पांच प्रवचन साधकों द्वारा पूछे गए प्रश्नों के जवाब।

कानों सुनी सो झूठ सब – Kano Suni So Jhuth Sab
अथातो प्रेम जिज्ञासा! अब प्रेम की जिज्ञासा। अब पुनः प्रेम की बात। दो ही बातें हैं परमात्मा की–ध्यान की या प्रेम की। दो ही मार्ग हैं–या तो शून्य हो जाओ या प्रेम में पूर्ण हो जाओ। या तो मिट जाओ समस्तरूपेण, कोई अस्मिता न रह जाए, कोई विचार न रह जाए, कोई मन न बचे; या रंग लो अपने को सब भांति प्रेम में, रत्ती भी बिना रंगी न रह जाए। तो या तो शून्य से कोई पहुंचता है सत्य तक, या प्रेम से। संत दरिया प्रेम की बात करेंगे। उन्होंने प्रेम से जाना। इसके पहले कि हम उनके वचनों में उतरें…अनूठे वचन हैं ये। और वचन हैं बिलकुल गैर-पढ़े लिखे आदमी के। दरिया को शब्द तो आता ही नहीं था; अति गरीब घर में पैदा हुए–धुनिया थे, मुसलमान थे। लेकिन बचपन से ही एक ही धुन थी कि कैसे प्रभु का रस बरसे, कैसे प्रार्थना पके। बहुत द्वार खटखटाए, न मालूम कितने मौलवियों, न मालूम कितने पंडितों के द्वार पर गए लेकिन सबको छूंछे पाया। वहां बात तो बहुत थी, लेकिन दरिया जो खोज रहे थे, उसका कोई भी पता न था। वहां सिद्धांत बहुत थे, शास्त्र बहुत थे, लेकिन दरिया को शास्त्र और सिद्धांत से कुछ लेना न था। वे तो उन आंखों की तलाश में थे जो परमात्मा की बन गई हों। वे तो उस हृदय की खोज में थे, जिसमें परमात्मा का सागर लहराने लगा हो। वे तो उस आदमी की छाया में बैठना चाहते थे जिसके रोएं-रोएं में प्रेम का झरना बह रहा हो। सो, बहुत द्वार खटखटाए लेकिन खाली हाथ लौटे। पर एक जगह गुरु से मिलन हो ही गया। जो खोजता है वह पा लेता है। देर-अबेर गुरु मिल ही जाता है। जो बैठे रहते हैं उन्हीं को नहीं मिलता है; जो खोज पर निकलते हैं उन्हें मिल ही जाता है। और खयाल रखो, ठीक द्वार पर आने के पहले बहुत से गलत द्वारों पर खटखटाना ही पड़ता है। ठीक की खोज के पहले गलत के बाजार में भटकना ही पड़ता है। यह भी अनिवार्य चरण है खोज का। जब तुम खोज लोगे तब तुम पाओगे कि जो गलत थे उन्होंने भी सहारा दिया। गलत को गलत की तरह पहचान लेना भी तो ठीक को ठीक की तरह पहचानने का कदम बन जाता है। तो गए बहुत द्वार-दरवाजों पर। जहां जहां खबर मिली वहां गए। लेकिन बातें तो बहुत पाईं, सिद्धांत बहुत पाए, शास्त्र बहुत पाए; सत्य की कोई झलक न मिली। पर मिली, एक जगह मिली। और जिसके पास मिली, उस आदमी का क्या नाम था यह भी ठीक ठीक पक्का पता नहीं है। उस आदमी के तन-प्राण ऐसे प्रेम में पगे थे कि लोग उन्हें संत प्रेम जी महाराज ही कहने लगे थे। इसलिए उनके ठीक नाम का कोई पता नहीं है। पहुंचते ही बात हो गई। —ओशो

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